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कविता संकलनों की आजकल बड़ी आफत है
उन्हें जल्दी कोई छापता नहीं
कोई छाप भी दे तो ये कंबख्त बिकते नहीं
खरीद भी ले कोई तो इन्हें पढ़ता नहीं
कोई पढ़ भी ले तो कुछ कहता नहीं
कोई कुछ कह भी दे तो कोई सुनता नहीं
कोई कुछ सुन भी ले तो कुछ समझता नहीं
अगर कोई इतनी सी बात समझ ले
तो फिर क्या बात
यह सुनकर वह मूँछों ही मूँछों में मुस्कराया
जैसे कह रहा हो
कोई पुरस्कार दिलवा दूँ तब...
तब क्या...
कवि जी सोच रहे हैं
तब क्या... तब क्या...!
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